Monday, December 23, 2013

शायद ऐसी ही हूँ मैं...........

क्यों लिखती हूँ मैं अपने जज़्बात पन्नों पर ,
क्यों सजाती हूँ मैं अपने अल्फाज पन्नों पर।

क्यों नहीं बता पाती  मैं अपने दिल की हर  बात अपनों को,
क्यों नहीं जता पाती  अपना डर  अपनों को।

सब पीछे  छूट  गए हैं मेरे सब सपने,
सब पीछे छूट  गए हैं मेरे सब अपने।

क्यों नहीं समझा मेरे अपनों ने  मुझे अपना,
क्यों नहीं माना  मेरे अपनों ने मुझे अपना।

क्यों लिखती हूँ मैं अपने जज़्बात पन्नों पर ,
क्यों सजाती हूँ मैं अपने अल्फाज पन्नों पर।

तूने ऐसा दर्द दिया है मुझे जिसे जाता पाना शायद मुश्किल था,
तूने ऐसे बीच रह में छोड़ा है मुझे जहाँ से वापिस लौट जाना शायद मुश्किल था।








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