Friday, December 27, 2013

शायरी..................................

कभी अगर तुम रुस्वा हो गए हमसे, 
तो ज़माने से हमारा नाता टूट जायेगा। 

कभी अगर तुम आँखों से दूर हुए हमारी, 
तो आँखों का आंसुओं से भी नाता टूट जायेगा।। 

ये मेरी महोब्बत कहो या पागलपन, हम नहीं जानते। 

पर  अगर कभी तुमने दामन छोड़ा हमारा, 
तो हमसे  ज़िन्दगी का  भी दामन छूट  जायेगा।।






अपनी हर  आरज़ू में  हैं ,
अपनी हर दुआ में आपकी ख़ुशी  मांगते हैं।
 जब  सोचते हैं क्या तोहफा मांगें आपसे ,
तो आपसे  उमर  भर कि आपकी महोब्बत मांगते हैं।

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 अपने आंसूं उन्हें मत दिखा ,
जिन्हे उनकी कोई कीमत नहीं ।

अपने जखम उन्हें मत दिखा,
जिनके पास उसका मरहम नहीं।

अपनी महोब्बत को दिल में दबाये रख बेशक ,

पर  उन्हें मत दिखा  ,
जिन्हे इसकी कोई एहमियत नहीं।  


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सपनो कि  दुनिया है मेरी ,
इसलिए  खवाबों के टूटने से डरती हूँ ,

कहने को तो तनहा नहीं,
मगर तनहा होने से डरती हूँ।

शायद इसे ही महोब्बत कहते हैं,

खुद से भी जयादा भरोसा करती हूँ उन पर ,
तब भी उनकी बेवफाई से डरती हूँ।
 

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अधूरे से थे , हम तुझसे मिलने से पहले।

बिखरे से थे , हम तुझसे मिलने से पहले।

चाहते थे कोई थाम ले आके हमको ,
तूने थमा तो दुनिया में एक पहचान मिली।

वरना खुद से ही अनजान से थे , तुझसे मिलने से पहले।


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मैं तनहा तो नहीं, पैर दुनिया वीरानी सी लगती है तुम बिन,
मैं बेरंग तो नहीं, पैर हेर रंग फीका लगता है तुम बिन।
मैं बेजान तो नहीं, पैर हेर खवाब टूटा सा लगता है तुम बिन।

कैसे कहें  तुमसे,

अपनी हेर दुआ अधूरी लगती है तुम बिन,
अपनी परछाई भी अधूरी  सी लगती है तुम बिन।


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एक तुझमे ही पूरी दुनिया सिमटी हुई नजर आती है मुझे ,
एक तुझमे ही अपनी महोब्बत पूरी होती हुई नजर आती है मुझे।

बेवजह ही पहले मंजिल को ढूंढते फिरते थे हम ,
अब तुझमे ही हर  रास्ते कि मंजिल नजर आती है मुझे।

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आज बेकाबू से मेरे जज्बात क्यों हैं ,
करने कि तुमसे महोब्बत भरी बातें क्यों हैं।
आ रहे हैं मेरी आँखों में आंसूं तुम्हारी याद में ,
तुम्हारी महोब्बत को महसूस करते मेरे ख़यालात क्यों हैं।
आज बेकाबू से मेरे जज्बात क्यों हैं।

करते हैं बेहान महोब्बत तुमसे,
फिर भी तुम्हारे लिए रोज बढ़ती मेरी महोब्बत क्यों हैं।
झुक जाती हैं मेरी मजरें तुम्हे देख केर,
फिर भी तुम्हे जी भर केर देखने कि चाहत क्यों हैं।
इतनी शिद्दत से तुझे सीने से लगाने कि चाहत क्यों हैं,
आज बेकाबू से मेरे ख़यालात क्यों हैं।

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बैठे हैं पलकें बिछाये किसी के इंतज़ार में ,
बैठे हैं दिल को थामे किसी कि याद में।

ना जाने कब होंगी हमारी निगाहें उनसे रूबरू,
बैठे हैं इसी खवाब के पूरा होने के  इंतज़ार में।


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लाखोँ  खवाब टूटे मेरे,
लाखोँ  अरमान टूटे मेरे,
हर  टूटे टुकड़े में बसी थी मेरी ज़िन्दगी,
हर  टुकड़े के साथ ज़िन्दगी के लाखोँ  जज्बात टूटे मेरे।

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क्या तोहफा दे तुझे, ये  हम समझ नहीं पाते ,
क्या नजराना दे तुझे, ये  हम समझ नहीं पाते ,
कभी सोचते हैं के अपनी ज़िन्दगी तेरे हवाले करदें ,
पर तुम्हे ही तुम्हारे हवाले कैसे करदे, ये हम समझ नहीं पाते ।


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